टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे
हम-सफ़र तूफ़ान-ए-ग़म से प्यार करने आए थे
डर के जंगल की फ़ज़ा से पीछे पीछे हो लिए
लोग छुप कर क़ाफ़िले पर वार करने आए थे
इस गुनह पर मिल रही है संग-सारी की साज़ी
पत्थरों को नींद से बेदार करने आए थे
लोग समझे अपनी सच्चाई की ख़ातिर जान दी
वर्ना हम तो जुर्म का इक़रार करने आए थे
वो भी कर्ब-ए-ख़ुद-बयानी में 'ज़फ़र' ग़लताँ मिला
जिस से अपनी ज़ात का इज़हार करने आए थे

ग़ज़ल
टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे
ज़फ़र गौरी