तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
हम तुझी को बुत-ए-बे-पीर लिए बैठे हैं
जिगर ओ दिल की न पूछो जिगर ओ दिल मेरे
निगह-ए-नाज़ के दो तीर लिए बैठे हैं
इन के गेसू दिल-ए-उश्शाक़ फँसाने के लिए
जा-ब-जा हल्क़ा-ए-ज़ंजीर लिए बैठे हैं
ऐ तिरी शान कि क़तरों में है दरिया जारी
ज़र्रे ख़ुर्शीद की तनवीर लिए बैठे हैं
फिर वो क्या चीज़ है जो दिल में उतर जाती है
तेग़ पास उन के न वो तीर लिए बैठे हैं
मय-ए-इशरत से भरे जाते हैं अग़्यार के जाम
हम तही कासा-ए-तक़दीर लिए बैठे हैं
किश्वर ओ इश्क़ में मुहताज कहाँ हैं 'बेदम'
क़ैस ओ फ़रहाद की जागीर लिए बैठे हैं
ग़ज़ल
तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
बेदम शाह वारसी