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तू देखे तो इक नज़र बहुत है | शाही शायरी
tu dekhe to ek nazar bahut hai

ग़ज़ल

तू देखे तो इक नज़र बहुत है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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तू देखे तो इक नज़र बहुत है
उल्फ़त तिरी इस क़दर बहुत है

ऐ दिल तू न कर हमारी ख़समी
बस इक दिल-ए-कीना-वर बहुत है

टुक और भी सब्र कर कि मुझ को
लिखना अभी नामा-बर बहुत है

हम आबला बन रहे हैं हम को
इक जुम्बिश-ए-नेश्तर बहुत है

शीशे में तिरे शराब साक़ी
टुक हम को भी दे अगर बहुत है

इस रंग से अपने घर न जाना
दामन तिरा ख़ूँ में तर बहुत है

अफ़्साना-ए-इश्क़ किस से कहिए
इस बात में दर्द-ए-सर बहुत है

मुझ को नहीं आह का भरोसा
यानी कि ये बे-असर बहुत है

इस दिल की तो तू ख़बर रक्खा कर
ये आप से बे-ख़बर बहुत है

क्या बिगड़ी है आज 'मुसहफ़ी' से
इस कूचे में शोर-ओ-शर बहुत है