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तू भी वहाँ नहीं मोहब्बत जहाँ नहीं | शाही शायरी
tu bhi wahan nahin mohabbat jahan nahin

ग़ज़ल

तू भी वहाँ नहीं मोहब्बत जहाँ नहीं

जगदीश सहाय सक्सेना

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तू भी वहाँ नहीं मोहब्बत जहाँ नहीं
हर आस्तान-ए-हुस्न तिरा आस्ताँ नहीं

उल्फ़त की थीं दलील तिरी बद-गुमानियाँ
अब बद-गुमान मैं हूँ कि तू बद-गुमाँ नहीं

दिलकश है गुलसिताँ भी तिरे हुस्न की तरह
लेकिन तिरी अदा की तरह दिल-सिताँ नहीं

नेमत मिली है तुम को जवानी की दोस्तो
अफ़्सोस है कि अज़्म तुम्हारा जवाँ नहीं

क्यूँकर कहूँ कि लोग हैं सू-ए-अदम-ए-रवाँ
इस कारवाँ में गर्द-ए-पस-ए-कारवाँ नहीं

है बे-नियाज़-ए-शादी-ओ-ग़म मेरी बे-ख़ुदी
ये वो चमन है जिस में बहार ओ ख़िज़ाँ नहीं

नादिम मिरा सुकूत कि है क़ल्ब-सोग-वार
दुनिया समझ रही है ख़मोशी फ़ुग़ाँ नहीं