तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार कौन करे
बहुत दिनों से मैं ख़ुश-फ़हमी-ए-विसाल में हूँ
जो तू नहीं तो मुझे बे-क़रार कौन करे
सुनाएँ हाल भी दिल का अगर सुने कोई
सुने न जब कोई चीख़-ओ-पुकार कौन करे
वो आए या कि न आए ये उस की है मर्ज़ी
शुमार-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कौन करे
जो मैं भी सब की तरह बस तिरे क़सीदे लिखूँ
इलाज-ए-बरहमी-ए-रोज़गार कौन करे
अगर नसीब में 'ज़ैग़म' ख़िज़ाँ ही लिक्खी हो
तो फिर जहाँ में तलाश-ए-बहार कौन करे
ग़ज़ल
तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे
ज़ैग़म हमीदी