तू अपने जैसा अछूता ख़याल दे मुझ को
मैं तेरा अक्स हूँ अपना जमाल दे मुझ को
मैं टूट जाऊँगी लेकिन न झुक सकूँगी कभी
मजाल है किसी पैकर में ढाल दे मुझ को
मैं अपने दिल से मिटाऊँगी तेरी याद मगर
तू अपने ज़ेहन से पहले निकाल दे मुझ को
मैं संग-ए-कोह की मानिंद हूँ न बिखरूँगी
न हो यक़ीं जो तुझे तो उछाल दे मुझ को
ख़ुशी ख़ुशी बढ़ूँ खो जाऊँ तेरी हस्ती में
अना के ख़ौफ़ से 'सानी' निकाल दे मुझ को
ग़ज़ल
तू अपने जैसा अछूता ख़याल दे मुझ को
ज़रीना सानी