तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
वो जल्वा-गाह तिरे ख़ाक-दाँ से दूर नहीं
वो मर्ग़-ज़ार कि बीम-ए-ख़िज़ाँ नहीं जिस में
ग़मीं न हो कि तिरे आशियाँ से दूर नहीं
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
ख़दंग-ए-जस्ता है लेकिन कमाँ से दूर नहीं
फ़ज़ा तिरी मह ओ परवीं से है ज़रा आगे
क़दम उठा ये मक़ाम आसमाँ से दूर नहीं
कहे न राह-नुमा से कि छोड़ दे मुझ को
ये बात राह-रव-ए-नुक्ता-दाँ से दूर नहीं
ग़ज़ल
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
अल्लामा इक़बाल