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तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी | शाही शायरी
tumhaare nam par maine har aafat sar pe rakkhi thi

ग़ज़ल

तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी

राहत इंदौरी

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तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी
नज़र शोलों पे रक्खी थी ज़बाँ पत्थर पे रक्खी थी

हमारे ख़्वाब तो शहरों की सड़कों पर भटकते थे
तुम्हारी याद थी जो रात भर बिस्तर पे रक्खी थी

मैं अपना अज़्म ले कर मंज़िलों की सम्त निकला था
मशक़्क़त हाथ पे रक्खी थी क़िस्मत घर पे रक्खी थी

इन्हीं साँसों के चक्कर ने हमें वो दिन दिखाए थे
हमारे पाँव की मिट्टी हमारे सर पे रक्खी थी

सहर तक तुम जो आ जाते तो मंज़र देख सकते थे
दिए पलकों पे रक्खे थे शिकन बिस्तर पे रक्खी थी