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तुम्हारे दीद की हसरत बहुत मुश्किल से निकलेगी | शाही शायरी
tumhaare did ki hasrat bahut mushkil se niklegi

ग़ज़ल

तुम्हारे दीद की हसरत बहुत मुश्किल से निकलेगी

जमीला ख़ुदा बख़्श

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तुम्हारे दीद की हसरत बहुत मुश्किल से निकलेगी
दुआ बन कर शब-ए-ग़म वो हमारे दिल से निकलेगी

ख़बर क्या थी कि तेरी कज-अदाई से बुत-ए-रा'ना
बिसान-ए-शम्अ रो कर आरज़ू महफ़िल से निकलेगी

तमन्ना रफ़्ता रफ़्ता रंग कुछ दिखलाएगी अपना
बनेगी नूर-ए-जाँ और दीदा-ए-कामिल से निकलेगी

बिसान-ए-निकहत-ए-गुल छुप नहीं सकती छुपाने से
ये बू-ए-ख़ून-ए-आशिक़ दामन-ए-क़ातिल से निकलेगी

निहाँ क्या ख़ाक होगी हसरत-ए-दीदार आशिक़ की
वो इक दिन यास बन कर दीदा-ए-बिस्मिल से निकलेगी

दिखाएगी मोहब्बत एक दिन उन को असर अपना
समाई दिल में जो उन के वो मेरे दिल से निकलेगी

तसव्वुर जानिब-ए-दिल चाहिए मजनूँ तुझे करना
तू जिस लैला का आशिक़ है वो इस महमिल से निकलेगी

ठहर जा नाक़ा-ए-दिलबर कि मैं चूमूँ क़दम तेरे
सदा ये मुश्त-ए-ख़ाक-ए-आशिक़-ए-बे-दिल से निकलेगी

ज़बाँ से नाला-ओ-फ़रियाद करना है अबस तेरा
'जमीला' वो दुआ काम आएगी जो दिल से निकलेगी