तुम से देखे न गए हम से दिखाए न गए
हाए वो ज़ख़्म जो इस दिल से छुपाए न गए
कर लिया यूँ तो हर इक रंज गवारा लेकिन
आज तक दिल से तिरी याद के साए न गए
हम ने चाहा भी नहीं हम ने भुलाया भी नहीं
दिल ने चाहा भी मगर दिल से भुलाए न गए
राह पर राह निकलती गई कूचे से तिरे
वर्ना इस राह पे हम आप से आए न गए
नक़्श-ए-पा बन के जहाँ मिट भी गया नक़्श-ए-उम्मीद
हम उसी राह पे बैठे हैं उठाए न गए
ग़ज़ल
तुम से देखे न गए हम से दिखाए न गए
जावेद कमाल रामपुरी