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तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा | शाही शायरी
tum bhi aaoge mere ghar jo sanam kya hoga

ग़ज़ल

तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा
मुझ पर इक रात करोगे जो करम क्या होगा

एक आलम ने किया है सफ़र-ए-मुल्क-ए-अदम
हम भी जावेंगे अगर सू-ए-अदम क्या होगा

दम-ए-रुख़्सत है मिरा आज मिरी बालीं पर
तुम अगर वक़्फ़ा करोगे कोई दम क्या होगा

देख उस चाक-ए-गरेबाँ को तो ये कहती है सुब्ह
जिस का सीना है ये कुछ उस का शिकम क्या होगा

चैन हो जाएगा दिल को मिरे अज़-राह-ए-करम
मेरी आँखों पे रखोगे जो क़दम क्या होगा

सोहबत-ए-ग़ैर का इंकार तो करते हो वले
खाओगे तुम जो मिरे सर की क़सम क्या होगा

शाना इक उम्र से करता है दो-वक़्ती ख़िदमत
तुझ को मालूम है ऐ दीदा-ए-नम क्या होगा

'मुसहफ़ी' वस्ल में उस के जो मुआ जाता हो
उस पे अय्याम-ए-जुदाई में सितम क्या होगा