तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा 
बराबर है दुनिया को देखा न देखा 
मिरा ग़ुंचा-ए-दिल है वो दिल गिरफ़्ता 
कि जिस को किसू ने कभू वा न देखा 
यगाना है तू आह बेगानगी में 
कोई दूसरा और ऐसा न देखा 
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ 
तिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा 
किया मुज को दाग़ों ने सर्व-ए-चराग़ाँ 
कभू तू ने आ कर तमाशा न देखा 
तग़ाफ़ुल ने तेरे ये कुछ दिन दिखाए 
इधर तू ने लेकिन न देखा न देखा 
हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हम 
खुली आँख जब कोई पर्दा न देखा 
शब ओ रोज़ ऐ 'दर्द' दर पे हूँ उस के 
किसू ने जिसे याँ न समझा न देखा
        ग़ज़ल
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'

