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तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा | शाही शायरी
tujhi ko jo yan jalwa-farma na dekha

ग़ज़ल

तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

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तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
बराबर है दुनिया को देखा न देखा

मिरा ग़ुंचा-ए-दिल है वो दिल गिरफ़्ता
कि जिस को किसू ने कभू वा न देखा

यगाना है तू आह बेगानगी में
कोई दूसरा और ऐसा न देखा

अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
तिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा

किया मुज को दाग़ों ने सर्व-ए-चराग़ाँ
कभू तू ने आ कर तमाशा न देखा

तग़ाफ़ुल ने तेरे ये कुछ दिन दिखाए
इधर तू ने लेकिन न देखा न देखा

हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हम
खुली आँख जब कोई पर्दा न देखा

शब ओ रोज़ ऐ 'दर्द' दर पे हूँ उस के
किसू ने जिसे याँ न समझा न देखा