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तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे | शाही शायरी
tujhe dil mein basaenge tere hi KHwab dekhenge

ग़ज़ल

तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे

शमशाद शाद

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तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे
मिटेंगे तेरी चाहत में वफ़ा के बाब देखेंगे

ये आँखें यार के दीदार की प्यासी हैं मुद्दत से
वो आएँ बाम पर तो जल्वा-ए-महताब देखेंगे

ख़ुमार-ए-ख़ुद-परस्ती भी कभी उतरेगा मौजों का
तो फिर ऐ क़ुल्ज़ुम-ए-हस्ती तुझे पायाब देखेंगे

रसाई जो तिरी महफ़िल तलक इक बार हो जाए
तुझे नज़दीक से ऐ गौहर-ए-नायाब देखेंगे

सुना है नींद के आलम में वो मसरूर लगते हैं
तो फिर ख़्वाबों में उस ज़ालिम को महव-ए-ख़्वाब देखेंगे

तिरे नाम-ओ-नसब से क्या ग़रज़ ऐ दुश्मन-ए-जानाँ
मिले ज़ख़्मों से फ़ुर्सत तो तिरे अलक़ाब देखेंगे

कोई मूसा-सिफ़त आ कर डुबोए ज़ुल्म का लश्कर
तभी हम आज के फ़िरऔन को ग़र्क़ाब देखें देखेंगे

लब-ए-साहिल से देखे हैं नज़ारे 'शाद' मौजों के
जुनून-ओ-शौक़ की ज़िद है कि अब गिर्दाब देखेंगे