EN اردو
तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता | शाही शायरी
tujhse gar wo dila nahin milta

ग़ज़ल

तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

;

तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता
ज़हर भी तुझ को क्या नहीं मिलता

जिस को वो ज़ुल्फ़ मार डाले है
सर-ए-मू ख़ूँ-बहा नहीं मिलता

और सब कुछ मिले है दुनिया में
लेकिन इक आश्ना नहीं मिलता

दिल-ए-दीवाना रात से गुम है
कहीं उस का पता नहीं मिलता

शैख़ कलबे से उठ निकल बाहर
घर में बैठे ख़ुदा नहीं मिलता

दर्द-ओ-ग़म को भी है नसीबा शर्त
ये भी क़िस्मत सिवा नहीं मिलता

इक ने पूछा ये 'मुसहफ़ी' से भला
क्यूँ तू ऐ बेवफ़ा नहीं मिलता

हँस के बोला कि ओ मियाँ उस से
क्या करूँ दिल मिरा नहीं मिलता