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तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते | शाही शायरी
tujhse bosa main na manga kabhu Darte Darte

ग़ज़ल

तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते

वली उज़लत

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तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते
देखिए आब-ए-बक़ा पाऊँगा मरते मरते

क्या है इंसाफ़ कि जूँ सुब्ह तू हँसता है हनूज़
मर चुका शम्अ सा मैं गिर्या ही करते करते

अब तो मुँह दे मुझे ऐ नूर-ए-नज़र आईना-वार
गर गईं पलकें सरिश्क आँख से झड़ते झड़ते

न हुआ दर्द सर-ए-नाज़ का संदल तुझे हाए
घुस गया माथा तिरे पाँव पे धरते धरते

जब से दिखला गया जाँ-बख़्श तू जल्वे की बहार
मर गईं बुलबुलें गुलज़ार से गिरते गिरते

हम दिवानों को नहीं हाजत-ए-ज़िंदाँ तिफ़्लो
छुप गए ढेर में हम संग के पड़ते पड़ते

ज़र्रा कर महर तू 'उज़लत' पे कि मानिंद-ए-हिलाल
ख़ाली हूँ आप से दिन हिज्र के फिरते फिरते