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तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ | शाही शायरी
tujh bin rah-e-hayat mein lutf-e-safar kahan

ग़ज़ल

तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ

रोहित सोनी ‘ताबिश’

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तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ
तस्कीन-ए-क़ल्ब-ओ-रूह सुकून-ए-जिगर कहाँ

तूफ़ान-ए-बर्क़-ओ-बाद में ये जाएँ पर कहाँ
उजड़े हुए चमन के परिंदों का घर कहाँ

उस की निगाह-ए-नाज़ ने बे-ख़ुद बना दिया
ख़ुद मुझ को अपने-आप की अब है ख़बर कहाँ

जाँ से अज़ीज़-तर है उन्हें गुल्सिताँ की ख़ाक
जाएँ चमन को अहल-ए-चमन छोड़ कर कहाँ

बस ख़ूबी-ए-नसीब ने तुझ से मिला दिया
वर्ना कहाँ पे तू है तिरी रहगुज़र कहाँ