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तुझ बदन पर जो लाल सारी है | शाही शायरी
tujh badan par jo lal sari hai

ग़ज़ल

तुझ बदन पर जो लाल सारी है

फ़ाएज़ देहलवी

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तुझ बदन पर जो लाल सारी है
अक़्ल उस ने मिरी बिसारी है

बाल देखे हैं जब सूँ मैं तेरे
ज़ुल्फ़ सी दिल कूँ बे-क़रारी है

क़द अलिफ़ सा हुआ मिरा जियूँ दाल
इश्क़ का बोझ सख़्त भारी है

सब के सीने को छेद डाला है
पल्क तेरी मगर कटारी है

ओढ़नी ऊदी पर कनारी ज़र्द
गिर्द शब के सुरज की धारी है

क़हर ओ लुत्फ़ ओ तबस्सुम-ओ-ख़ंदा
तेरी हर इक अदा पियारी है

तिरछी नज़राँ सूँ देखना हँस हँस
मोर से चाल तुझ नियारी है

ज़िंदा 'फ़ाएज़' का दिल हुआ तुझ सूँ
हुस्न तेरा बी फ़ैज़-ए-बारी है