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तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं | शाही शायरी
teri jaanib se dil mein waswase hain

ग़ज़ल

तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं

सलीम अहमद

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तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं
ये कुत्ते रात भर भोंका किए हैं

लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा
ये कपड़े अब पुराने हो चुके हैं

उतारें केंचुली अब तल्ख़ जज़्बात
कि वो अपने में घुट कर रह गए हैं

न हो मायूस ख़ुश्क आँखों से ऐ दिल
कि सहराओं में भी दरिया बहे हैं

'सलीम' अच्छी ग़ज़ल है तेरी माना
मगर ये फूल घूरे पर खिले हैं