तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं
ये कुत्ते रात भर भोंका किए हैं
लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा
ये कपड़े अब पुराने हो चुके हैं
उतारें केंचुली अब तल्ख़ जज़्बात
कि वो अपने में घुट कर रह गए हैं
न हो मायूस ख़ुश्क आँखों से ऐ दिल
कि सहराओं में भी दरिया बहे हैं
'सलीम' अच्छी ग़ज़ल है तेरी माना
मगर ये फूल घूरे पर खिले हैं

ग़ज़ल
तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं
सलीम अहमद