तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे
दुआ मेरी तुझ मन में भारी लगे
तदी क़द्र-ए-आशिक़ की बूझे सजन
किसी साथ अगर तुझ कूँ यारी लगे
भुला देवे वो ऐश-ओ-आराम सब
जिसे ज़ुल्फ़ सीं बे-क़रारी लगे
नहीं तुझ सा और शोख़ ऐ मन हिरन
तिरी बात दिल को न्यारी लगे
भवाँ तेरी शमशीर ज़ुल्फ़ाँ कमंद
पलक तेरी जैसे कटारी लगे
हुए सर्व बाज़ार दामन का देख
अगर गर्द-ए-दामन कनारी लगे
न जानूँ तू साक़ी था किस बज़्म का
नयन तेरी मुझ कूँ ख़ुमारी लगे
वही क़द्र 'फ़ाएज़' की जाने बहुत
जिसे इश्क़ का ज़ख़्म कारी लगे
ग़ज़ल
तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़