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तिरी चाल धुन तिरी साँस सुर मिरे दिल को आ के सँभाल भी | शाही शायरी
teri chaal dhun teri sans sur mere dil ko aa ke sambhaal bhi

ग़ज़ल

तिरी चाल धुन तिरी साँस सुर मिरे दिल को आ के सँभाल भी

तनवीर मोनिस

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तिरी चाल धुन तिरी साँस सुर मिरे दिल को आ के सँभाल भी
जो ये जल-तरंग ज़रा बजा तो ये डाल देगा धमाल भी

न उछाल झील में कंकरी कि ये ख़ौफ़नाक सा खेल है
इसी खेल में न उतर पड़े तिरी आँख पर ये वबाल भी

कई लोग मोरचा-बंद ख़ौफ़ की रेत में हैं करम करम
तिरे हाथ में ये जो संग है किसी सम्त उस को उछाल भी

ऐ मुकरती आँख अदावतें तू क़याम भी हैं सबात भी
तिरे साथ दुश्मनी इक तरफ़ नहीं दोस्ती की मजाल भी

तिरे तर्क-ए-राह के फ़ैसले का जवाज़ मैं नहीं माँगता
मगर आने वाला कोई तो वक़्त उठाएगा ये सवाल भी

यद-ए-बैज़ा की तू है मालकिन ऐ सफ़ेद संग की मूर्ती
तिरी आँख दरिया-ए-नील है मिरी रात कोई निकाल भी