तिरे हाथ पे खेतों की मिट्टी मिरा मोतियों वाला जामा
कल चुनते हुए सरसों तू ने क्यूँ मेरा दामन थामा
इसरार न कर ज़िद छोड़ सखी जाती हूँ पिया से मिलने
ले बाँध कलाई पर गजरे ले डाल गले में नामा
वही आ के बिराजे आँगन में वही साजे नद्दी के तट पर
वही भैंसें चराए बैलों में वही चरवाहा वही कामा
औराक़ सजन संजोग कथा इदराक स्वयंवर सखियाँ
कविराज तुम अपनी कविता का बन-बास रखो सरनामा
कहीं घुँघट के पट कन्हाई, कहीं बस्ती में रुस्वाई
कहीं होंट की खोंट पे मुरली की धुन कहीं हृदय में हंगामा
ग़ज़ल
तिरे हाथ पे खेतों की मिट्टी मिरा मोतियों वाला जामा
नासिर शहज़ाद