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तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा | शाही शायरी
tere aashufta se kya haal-e-betabi bayan hoga

ग़ज़ल

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
जबीन-ए-शौक़ होगी और तेरा आस्ताँ होगा

ज़बान-ए-शम-ए-महफ़िल से सुना है अहल-ए-महफ़िल ने
तिरा अंजाम क्या परवाना-ए-आतिश-ब-जाँ होगा

तलातुम है उमीदों का तसादुम आरज़ूओं का
दिल-ए-हंगामा-परवर कौन तेरा राज़दाँ होगा

रहें यूँही अगर रंगीनियाँ तर्ज़-ए-तबस्सुम की
मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर पर ख़ंदा-ए-गुल का गुमाँ होगा

तजम्मुल से गुज़र होगा तिरे कूचे में आशिक़ का
तमन्नाओं का लश्कर कारवाँ-दर-कारवाँ होगा

कभी तौफ़ीक़ तर्क-ए-मा-सिवा की हो ही जाएगी
दिल-ए-आज़ाद होगा और ऐश-ए-जावेदाँ होगा

सुरूर-अफ़्ज़ा-ओ-मस्ती-ख़ेज़-ओ-शोरिश-आफ़रीं होगी
वो बज़्म-ए-शेर जिस में 'वहशत'-ए-शेवा-बयाँ होगा