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तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था | शाही शायरी
tera lahza wahi talwar jaisa tha

ग़ज़ल

तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था

बकुल देव

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तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था
मिरी गर्दन में ख़म हर बार जैसा था

उतर जाता तो रुस्वाई बहुत होती
कि सर का बोझ भी दस्तार जैसा था

तराशी हैं ग़म-ए-दौराँ ने तक़दीरें
ये ख़ंजर भी किसी औज़ार जैसा था

हँसी भी इश्तिहारों सी चमकती थी
वो चेहरा तो किसी अख़बार जैसा था

बहुत रिश्ते थे सब की क़ीमतें तय थी
हमारे घर में कुछ बाज़ार जैसा था