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तिलिस्म-ए-नश्शा-ए-दुनिया भी आज ख़त्म हुआ | शाही शायरी
tilism-e-nashsha-e-duniya bhi aaj KHatm hua

ग़ज़ल

तिलिस्म-ए-नश्शा-ए-दुनिया भी आज ख़त्म हुआ

रोहित सोनी ‘ताबिश’

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तिलिस्म-ए-नश्शा-ए-दुनिया भी आज ख़त्म हुआ
जो हो रहा था तमाशा भी आज ख़त्म हुआ

मिला जो उस से तो उस ने भी फेर ली नज़रें
चलो ये आख़िरी रिश्ता भी आज ख़त्म हुआ

गिरा ज़मीं पे सितारा ये किस के मिज़्गाँ से
ये किस के दिल का सहारा भी आज ख़त्म हुआ

मिले जो बरसों के प्यासे तो ऐसे एक हुए
कि एहतियात का पहरा भी आज ख़त्म हुआ

जो रफ़्ता-रफ़्ता हुई ख़त्म वज़-ए-देरीना
मोहब्बतों का सलीक़ा भी आज ख़त्म हुआ

तुम्हारी याद से समझौता कर लिया मैं ने
ख़याल-ए-वादा-ए-फ़र्दा भी आज ख़त्म हुआ

न जाने कैसे तुझे अपना मान बैठा था
मिरी नज़र का वो धोका भी आज ख़त्म हुआ

तिरे तग़ाफ़ुल-ए-पैहम ने कर दिया मायूस
मिरा वो ज़ौक़-ए-तमन्ना भी आज ख़त्म हुआ

वो दिल भी ले गए पहलू से उठ के ऐ 'ताबिश'
ये रोज़ रोज़ का झगड़ा भी आज ख़त्म हुआ