तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था
मिरा यक़ीं एहतिमाल तक था
अजीब था दर्द-ए-ना-रसाई
सदा-ब-सहरा सवाल तक था
चराग़ आँखों में जल रहे थे
सुकूत शाम-ए-मलाल तक था
दयार-ए-शब का उदास मंज़र
तुलू-ए-हुस्न-ए-ज़वाल तक था
तबस्सुम-ए-दिल-नवाज़ भी ऐ 'नाज़'
लब-ए-गुल-ए-पाएमाल तक था
ग़ज़ल
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था
नाज़ क़ादरी