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तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था | शाही शायरी
tilism-e-KHwab-o-KHayal tak tha

ग़ज़ल

तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था

नाज़ क़ादरी

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तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था
मिरा यक़ीं एहतिमाल तक था

अजीब था दर्द-ए-ना-रसाई
सदा-ब-सहरा सवाल तक था

चराग़ आँखों में जल रहे थे
सुकूत शाम-ए-मलाल तक था

दयार-ए-शब का उदास मंज़र
तुलू-ए-हुस्न-ए-ज़वाल तक था

तबस्सुम-ए-दिल-नवाज़ भी ऐ 'नाज़'
लब-ए-गुल-ए-पाएमाल तक था