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तीरगी नाम है दिल वालों के उठ जाने का | शाही शायरी
tirgi nam hai dil walon ke uTh jaane ka

ग़ज़ल

तीरगी नाम है दिल वालों के उठ जाने का

साक़िब लखनवी

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तीरगी नाम है दिल वालों के उठ जाने का
जिस को शब कहते हैं मक़्तल है वो परवाने का

चल बयाबाँ की तरफ़ जी नहीं घबराने का
रूह-ए-मजनूँ से घर आबाद है वीराने का

दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
मैं तो समझा था कि दर खुल गया मयख़ाने का

दम-ए-आख़िर की मुलाक़ात में क्या तुम से कहूँ
वक़्त ही तंग बहुत हिज्र के अफ़्साने का

दामन-ए-शम्अ' पे धब्बा न रहा वाह रे इश्क़
ख़ून अब तक नज़र आया नहीं परवाने का

तंग है सेहन-ए-जहाँ साथ न ले बार-ए-अमल
रास्ता मिलता है मुश्किल से गुज़र जाने का

गुल-ओ-आहू चमन-ओ-दश्त में कह जाते हैं कुछ
कहीं मौक़ा नहीं ऐ दिल तिरे बहलाने का

रोके जाते हैं रह-ए-दोस्त के चलने वाले
वही दुश्मन है जो हमदर्द है दीवाने का

क़ब्र वाले मुए मम्नून-ए-ज़ियारत लेकिन
नाम बदनाम किया आप ने वीराने का

हिज्र ने कौन सा पैवंद लगा रक्खा था
रास्ता मिल गया ख़ंजर को गुज़र जाने का

तो शब-ए-ग़म को न समझा हो तो मैं समझा दूँ
वही मैदान-ए-शहादत तिरे परवाने का

क़िस्सा‌‌‌-ए-बाग़ है और मेरी मसर्रत की उमीद
ढंग आता नहीं सय्याद को बहलाने का

बज़्म-ए-रंगीं में तिरी ज़िक्र-ए-ग़म आया तो सही
ख़ुश रहे छेड़ने वाला मिरे अफ़्साने का

आशियाँ आबला-ए-बाग़ है ऐ सोख़्ता-दिल
इक निशाँ छोड़ चला हूँ तिरे जल जाने का

इबरत-ए-अक़्ल है वारफ़्तगी-ए-अहल-ए-मज़ाक़
होश वालों में है चर्चा तिरे दीवाने का

हस्ब-ए-फ़रमाइश-ए-गर्दिश हैं ग़रीबों के मज़ार
आसमाँ दोस्त है मंज़र मिरे वीराने का

हिस्सा-ए-बख़्त का माने है यही दौर-ए-फ़लक
बढ़ गया घूम के रस्ता मिरे पैमाने का

हो गया ग़र्क़ सर-ए-शो'ला-ए-शम-ए-महफ़िल
ख़ून ऊँचा हुआ उतना किसी परवाने का

नज़्अ' के वक़्त जो कहता हूँ वो समझे कि नहीं
बाब-ए-अव्वल तो यहीं ख़त्म है अफ़्साने का

ले परेशानी-ए-दिल अब है तिरी उम्र दराज़
वक़्त खिंचने लगा ज़ुल्फ़ों के सँवर जाने का

चोट खाने से दबी आग उभर आई है
रंग बदला है मिरे दिल ने सनम-ख़ाने का

दाग़-ए-दिल क़ब्र की ज़ुल्मत में है बे-नूर ऐसा
जैसे देखा हो चराग़ आप ने वीराने का

हुस्न और इश्क़ के नैरंग ख़ुदा ही जाने
शम्अ' जलती है कि दिल जलता है परवाने का

देख ख़ून-ए-सर-ए-फ़रहाद का रंगीं पत्थर
ये नगीना है बनाया हुआ दीवाने का

नज़्अ' इक ईद है रोते हुए वो आए हैं
ऐ दिल-ए-ज़ार यही वक़्त है मर जाने का

अहल-ए-दिल जागते-सोते में सुना करते हैं
वक़्त कोई नहीं 'साक़िब' मिरे अफ़्साने का