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तीर पे तीर निशानों पे निशाने बदले | शाही शायरी
tir pe tir nishanon pe nishane badle

ग़ज़ल

तीर पे तीर निशानों पे निशाने बदले

सय्यद आरिफ़ अली

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तीर पे तीर निशानों पे निशाने बदले
शुक्र है हुस्न के अंदाज़ पुराने बदले

प्यार रुस्वा न हुआ आज तलक दोनों का
हम ने मिलने के नए रोज़ ठिकाने बदले

दौर आज़ादी-ए-गुलशन का बहुत याद आया
मेरे हिस्से के जो सय्याद ने दाने बदले

इक मुलाक़ात ने दिल पर किया ऐसा जादू
फिर न उतरा वो नशा लाख सियाने बदले

दर-ब-दर ठोकरें खा कर न मुक़द्दर बदला
मेरे हालात भी बदले तो ख़ुदा ने बदले

पहले जैसा नहीं माहौल रहा गुलशन का
रुख़ बदल अब तो हवाओं के ज़माने बदले

पेश क्या करते उन्हें जाम-ए-मोहब्बत 'आरिफ़'
उम्र के साथ ये मौसम भी सुहाने बदले