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थोड़ी देर को जी बहला था | शाही शायरी
thoDi der ko ji bahla tha

ग़ज़ल

थोड़ी देर को जी बहला था

नासिर काज़मी

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थोड़ी देर को जी बहला था
फिर तिरी याद ने घेर लिया था

याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था

हरे गिलास में चाँद के टुकड़े
लाल सुराही में सोना था

चाँद के दिल में जलता सूरज
फूल के सीने में काँटा था

काग़ज़ के दिल में चिंगारी
ख़स की ज़बाँ पर अँगारा था

दिल की सूरत का इक पत्ता
तेरी हथेली पर रक्खा था

शाम तो जैसे ख़्वाब में गुज़री
आधी रात नशा टूटा था

शहर से दूर हरे जंगल में
बारिश ने हमें घेर लिया था

सुब्ह हुई तो सब से पहले
मैं ने तेरा मुँह देखा था

देर के बा'द मिरे आँगन में
सुर्ख़ अनार का फूल खिला था

देर के मुरझाए पेड़ों को
ख़ुशबू ने आबाद किया था

शाम की गहरी ऊँचाई से
हम ने दरिया को देखा था

याद आईं कुछ ऐसी बातें
मैं जिन्हें कब का भूल चुका था