थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था
सर पे सूरज था मिरे पर साएबाँ मिलता न था
बे-नतीजा ही रही है हर सफ़र की जुस्तुजू
ढूँडने निकले थे जिस को वो जहाँ मिलता न था
मंज़िलें आसान थीं और रास्ते मख़दूश थे
कश्तियाँ मौजूद थीं पर बादबाँ मिलता न था
घोंसले ख़ाली पड़े हैं और वहीं पर आस पास
कुछ परिंदे थे कि जिन को आशियाँ मिलता न था
गर्दिश-ए-दौराँ मुझे फिर अब वहीं ले आई है
शहर जो मेरा था लेकिन हम-ज़बाँ मिलता न था
ग़ज़ल
थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था
अशरफ़ शाद