EN اردو
ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था | शाही शायरी
Thahra wahi nayab ki daman mein nahin tha

ग़ज़ल

ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था

ज़ेब ग़ौरी

;

ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था
जो फूल चुना मैं ने वो गुलशन में नहीं था

थी मौज लपकती हुई मेरे ही लहू की
चेहरा कोई दीवार के रौज़न में नहीं था

ख़ाकिस्तर-ए-जाँ को मिरी महकाए था लेकिन
जूही का वो पौदा मिरे आँगन में नहीं था

आख़िर मैं हदफ़ अपना बनाता भी तो किस को
मेरा कोई दुश्मन सफ़-ए-दुश्मन में नहीं था

छेड़ा तो बहुत सब्ज़ हवाओं ने मगर 'ज़ेब'
शो'ला ही कोई ख़ाक के ख़िर्मन में नहीं था