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ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम | शाही शायरी
Thani thi dil mein ab na milenge kisi se hum

ग़ज़ल

ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम

मोमिन ख़ाँ मोमिन

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ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम

I had resolved to meet no one ever again
my heart made me helpless and I could not refrain

हँसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम
मुँह देख देख रोते हैं किस बेकसी से हम

when I see people laugh amongst themselves I stare
at their faces and shed tears in utter despair

हम से न बोलो तुम इसे क्या कहते हैं भला
इंसाफ़ कीजे पूछते हैं आप ही से हम

whatever it be called, you do not have to say
I ask you for justice that's merely all I pray

बे-ज़ार जान से जो न होते तो माँगते
शाहिद शिकायतों पे तिरी मुद्दई से हम

if I were not disgusted with life I would have sought
My rival to bear witness against the plaints you brought

उस कू में जा मरेंगे मदद ऐ हुजूम-ए-शौक़
आज और ज़ोर करते हैं बे-ताक़ती से हम

O throng of my desires help me, in her street, to die
however weak my efforts be now harder I will try

साहब ने इस ग़ुलाम को आज़ाद कर दिया
लो बंदगी कि छूट गए बंदगी से हम

the master has now freed me from the yoke of slavery
see my worship that from bondage I have been set free

बे-रोए मिस्ल-ए-अब्र न निकला ग़ुबार-ए-दिल
कहते थे उन को बर्क़-ए-तबस्सुम हँसी से हम

Till I cried like clouds, my heart's delusions were all there
Flippantly, her smile to lightning, I used to compare

इन ना-तावनियों पे भी थे ख़ार-ए-राह-ए-ग़ैर
क्यूँ कर निकाले जाते न उस की गली से हम

tho frail and weak, a thorn was I in my rival's way
why would I, then from her path, not be cast away

क्या गुल खिलेगा देखिए है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर
और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम

wait and see what happens, spring is not yet near
towards wilderness I flee, this early in the year

मुँह देखने से पहले भी किस दिन वो साफ़ था
बे-वजह क्यूँ ग़ुबार रखें आरसी से हम

even ere my face I saw, when was it spotless, clean?
why should then a grudge we bear, against the mirror's sheen?

है छेड़ इख़्तिलात भी ग़ैरों के सामने
हँसने के बदले रोएँ न क्यूँ गुदगुदी से हम

her dalliance with my rival vexes me so deep
when tickled, 'stead of laughing, why should I not weep

वहशत है इश्क़-ए-पर्दा-नशीं में दम-ए-बुका
मुँह ढाँकते हैं पर्दा-ए-चश्म-ए-परी से हम

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क्या दिल को ले गया कोई बेगाना-आश्ना
क्यूँ अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम

has my heart been taken by a stranger tell me pray
Why then am I a stranger to myself today?

ले नाम आरज़ू का तो दिल को निकाल लें
'मोमिन' न हों जो रब्त रखें बिदअती से हम

if it even mentions hope the heart I will deface
I'm not a true adherent if new tenets I embrace