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था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही | शाही शायरी
tha jahan madrasa-e-shiri-o-shahanshahi

ग़ज़ल

था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही

अल्लामा इक़बाल

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था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही
आज इन ख़ानक़हों में है फ़क़त रूबाही

नज़र आई न मुझे क़ाफ़िला-सालारों में
वो शबानी कि है तम्हीद-ए-कलीमुल-लाही

लज़्ज़त-ए-नग़्मा कहाँ मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए
आह उस बाग़ में करता है नफ़स कोताही

एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही

सिफ़त-ए-बर्क़ चमकता है मिरा फ़िक्र-ए-बुलंद
कि भटकते न फिरें ज़ुल्मत-ए-शब में राही