था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी
इश्क़ ज़िंदा नहीं रहता है ज़ियादा यूँ भी
इक तो इन आँखों में नश्शा था बला का उस पर
हम को मर्ग़ूब है कैफ़िय्यत-ए-बादा यूँ भी
नामा-बर उस से न अहवाल हमारा कहना
वो तुनुक-ख़ू है बिगड़ जाए मबादा यूँ भी
सो गए हम भी कि बे-कार था रस्ता तकना
उस को आना ही नहीं था शब-ए-वा'दा यूँ भी
कुछ तो वो हुस्न पशेमाँ है जफ़ा पर अपनी
और कुछ उस के लिए दिल था कुशादा यूँ भी
कूच कर जाते हैं हम कू-ए-मोहब्बत से 'फ़राज़'
इन दिनों चाक-ए-गरेबाँ हैं ज़ियादा यूँ भी
ग़ज़ल
था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी
अहमद फ़राज़