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तेरी तस्कीं का सबब कौन-ओ-मकाँ है कि नहीं | शाही शायरी
teri taskin ka sabab kaun-o-makan hai ki nahin

ग़ज़ल

तेरी तस्कीं का सबब कौन-ओ-मकाँ है कि नहीं

कलीम अहमदाबादी

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तेरी तस्कीं का सबब कौन-ओ-मकाँ है कि नहीं
रूह-परवर ये जहान-ए-गुज़राँ है कि नहीं

दिन की ज़ौ-ताबियाँ तारीक फ़ज़ाएँ शब की
पिछली रातों के धुँदलके से अयाँ है कि नहीं

नारा-ए-दार-ओ-रसन हादिसा-ए-कौन-ओ-मकाँ
ख़ुफ़्ता-जानों के लिए ख़्वाब-ए-गिराँ है कि नहीं

ख़ुद ख़म-ओ-पेच तुझे राह के बतला देंगे
तेरी ठोकर में तिरा सूद-ओ-ज़ियाँ है कि नहीं

तेरी ज़ुल्फ़ें तिरा रुख़ तेरी जबीं तेरी नज़र
ये चमन आईना-दीदा-वराँ है कि नहीं

इस नज़र से वो मुझे देखते रहते हैं 'कलीम'
गर्म ख़ूँ गर्म नफ़स गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है कि नहीं