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तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा | शाही शायरी
teri tarah malal mujhe bhi nahin raha

ग़ज़ल

तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा

बाक़ी अहमदपुरी

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तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा
जा अब तिरा ख़याल मुझे भी नहीं रहा

तू ने भी मौसमों की पज़ीराई छोड़ दी
अब शौक़-ए-माह-ओ-साल मुझे भी नहीं रहा

मेरा जवाब क्या था तुझे भी ख़बर नहीं
याद अब तिरा सवाल मुझे भी नहीं रहा

जिस बात का ख़याल न तू ने कभी किया
इस बात का ख़याल मुझे भी नहीं रहा

तोड़ा है तू ने जब से मिरे दिल का आइना
अंदाज़ा-ए-जमाल मुझे भी नहीं रहा

'बाक़ी' में अपने फ़न से बड़ा पुर-ख़ुलूस हूँ
इस वास्ते ज़वाल मुझे भी नहीं रहा