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तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं | शाही शायरी
teri mahfil mein jitne ai sitam-gar jaane wale hain

ग़ज़ल

तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

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तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
हमीं हैं एक उन में जो तिरा ग़म खाने वाले हैं

अदम के जाने वालो दौड़ते हो किस लिए ठहरो
ज़रा मिल के चलो हम भी वहीं के जाने वाले हैं

सफ़ाई अब हमारी और तुम्हारी हो तो क्यूँ कर हो
वही दुश्मन हैं अपने जो तुम्हें समझाने वाले हैं

किसे हम दोस्त समझें इस जहाँ में और किसे दुश्मन
कि जो समझाने वाले हैं वही बहकाने वाले हैं

मरज़ बढ़ जाए जिस से ऐ तबीब अब वो दवा देना
सुना है आज वो मेरी ख़बर को आने वाले हैं

न सुनते हैं किसी की और मुँह से बात करते हैं
ख़ुदा जाने मुसाफ़िर ये कहाँ के जाने वाले हैं

तिरे बीमार कब खाएँ दवा परहेज़ क्या जानें
ये हैं ख़ून-ए-जिगर पीते ये ग़म के खाने वाले हैं

क़यामत तक न वो ऐ 'मशरिक़ी' मंज़िल पे पहुँचेंगे
ख़याली घोड़े जो मैदान में दौड़ाने वाले हैं