तेरे दर्शन सदा नहीं होते
मो'जिज़े बारहा नहीं होते
आओ तो आहटें नहीं होतीं
जाओ तो नक़्श-ए-पा नहीं होते
तुम से मिलने ज़रूर आऊँगा
फ़र्ज़ मुझ से क़ज़ा नहीं होते
टूट जाते हैं हब्स-मौसम में
वो दरीचे जो वा नहीं होते
हाथ ख़ाली उठाते हैं 'शाहिद'
लब पे हर्फ़-ए-दुआ नहीं होते
ग़ज़ल
तेरे दर्शन सदा नहीं होते
शाहिद फ़रीद