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तेरे दर्शन सदा नहीं होते | शाही शायरी
tere darshan sada nahin hote

ग़ज़ल

तेरे दर्शन सदा नहीं होते

शाहिद फ़रीद

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तेरे दर्शन सदा नहीं होते
मो'जिज़े बारहा नहीं होते

आओ तो आहटें नहीं होतीं
जाओ तो नक़्श-ए-पा नहीं होते

तुम से मिलने ज़रूर आऊँगा
फ़र्ज़ मुझ से क़ज़ा नहीं होते

टूट जाते हैं हब्स-मौसम में
वो दरीचे जो वा नहीं होते

हाथ ख़ाली उठाते हैं 'शाहिद'
लब पे हर्फ़-ए-दुआ नहीं होते