EN اردو
तेरे चेहरे की तरह और मिरे सीने की तरह | शाही शायरी
tere chehre ki tarah aur mere sine ki tarah

ग़ज़ल

तेरे चेहरे की तरह और मिरे सीने की तरह

मुस्तफ़ा ज़ैदी

;

तेरे चेहरे की तरह और मिरे सीने की तरह
मेरा हर शेर दमकता है नगीने की तरह

फूल जागे हैं कहीं तेरे बदन की मानिंद
ओस महकी है कहीं तेरे पसीने की तरह

ऐ मुझे छोड़ के तूफ़ान में जाने वाली
दोस्त होता है तलातुम में सफ़ीने की तरह

ऐ मिरे ग़म को ज़माने से बताने वाली
मैं तिरा राज़ छुपाता हूँ दफ़ीने की तरह

तेरा वादा था कि इस माह ज़रूर आएगी
अब तो हर रोज़ गुज़रता है महीने की तरह