तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
जिस में है मतलब-ए-दीवान हिलाली ऐ शोख़
गौहर-ए-अश्क कूँ है हल्क़ा-ब-गोशी का ख़याल
गर लगे हात तिरे कान की बाली ऐ शोख़
रूह-ए-फ़रहाद भी ख़ुश हो के मिठाई बाँटे
गर सुने तुझ लब-ए-शीरीं सती गाली ऐ शोख़
जब सें देखी है ख़त-ए-सब्ज़ में तेरे लब-ए-सुर्ख़
तब सें सब्ज़े में छुपी पान की लाली ऐ शोख़
शहर में उल्फ़त-ए-सहरा है मुझे दामन-गीर
क्या क़यामत हैं तिरी चश्म-ए-ग़ज़ाली ऐ शोख़
मसनद-ए-मतलब-ए-दिल पर मिरे कर मोहर-ए-क़ुबूल
मंसब-ए-लुत्फ़ का मंगता हूँ बहाली ऐ शोख़
बस कि तस्वीर तिरी नक़्श किया दिल में 'सिराज'
पर्दा-ए-चश्म है फ़ानूस-ए-ख़याली ऐ शोख़
ग़ज़ल
तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
सिराज औरंगाबादी