तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह
और हक़ीक़त का इज़हार अपनी जगह
अब खंडर है खंडर ही कहो दोस्तो
शीश-महलों के आसार अपनी जगह
तूर पर लाख मूसा से हो गुफ़्तुगू
अर्श-ए-आज़म पे दीदार अपनी जगह
अव्वलन हक़ ने तख़्लीक़ जिस को किया
सब के बा'द उस का इज़हार अपनी जगह
मुख़्तसर ये बता सर-ब-कफ़ कौन था
जीत अपनी जगह हार अपनी जगह
भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं
सहन के बीच की दीवार अपनी जगह

ग़ज़ल
तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह
नवाज़ देवबंदी