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तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह | शाही शायरी
tegh apni jagah dar apni jagah

ग़ज़ल

तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह

नवाज़ देवबंदी

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तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह
और हक़ीक़त का इज़हार अपनी जगह

अब खंडर है खंडर ही कहो दोस्तो
शीश-महलों के आसार अपनी जगह

तूर पर लाख मूसा से हो गुफ़्तुगू
अर्श-ए-आज़म पे दीदार अपनी जगह

अव्वलन हक़ ने तख़्लीक़ जिस को किया
सब के बा'द उस का इज़हार अपनी जगह

मुख़्तसर ये बता सर-ब-कफ़ कौन था
जीत अपनी जगह हार अपनी जगह

भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं
सहन के बीच की दीवार अपनी जगह