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तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं | शाही शायरी
tashrif shab-e-wada jo wo lae hue hain

ग़ज़ल

तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं

नादिर लखनवी

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तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं
सर ख़म है नज़र नीची है शरमाए हुए हैं

रुख़ पर जो सियह-ज़ुल्फ़ को को बिखराए हुए हैं
वो चौदहवीं के चाँद हैं गहनाए हुए हैं

फूलों से सिवा है बदन-ए-पाक में ख़ुशबू
कब इत्र लगाने से वो इतराए हुए हैं

हम्माम में जाने के लिए क्या कहिए कोई
वो तो अरक़-ए-शर्म में नहलाए हुए हैं