तरीक़-ए-कोहना पे अब नज़्म-ए-गुलिस्ताँ न रहे 
मिरी बहार को अँदेशा-ए-ख़िज़ाँ न रहे 
ये आरज़ू है बदल जाए रस्म-ए-शहर-ए-वफ़ा 
उदास हुस्न न हो इश्क़ सर-गराँ न रहे 
पयाम-ए-वस्ल से दिल बाग़ बाग़ हो जाएँ 
लबों पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-बुताँ न रहे 
तुलू-ए-मेहर बड़े तुज़्क-ओ-एहतिशाम से हो 
उफ़ुक़ सियाही-ए-शब से धुआँ धुआँ न रहे 
समाअ'तों पे मुसलसल हो नग़्मगी का नुज़ूल 
नज़र में ज़िश्त-मनाज़िर का कारवाँ न रहे 
मसर्रतों के फरेरे जहाँ में लहराएँ 
ग़म-ओ-अलम के लिए गोशा-ए-अमाँ न रहे 
ब-रु-ए-अद्ल सभी अपना अपना हिस्सा लें 
और एहतिमाल-ए-ग़लत बख़्शी-ए-मुग़ाँ न रहे
        ग़ज़ल
तरीक़-ए-कोहना पे अब नज़्म-ए-गुलिस्ताँ न रहे
जाफ़र बलूच

