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तक़दीर के लिखे से सिवा बन गए हैं हम | शाही शायरी
taqdir ke likhe se siwa ban gae hain hum

ग़ज़ल

तक़दीर के लिखे से सिवा बन गए हैं हम

कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर

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तक़दीर के लिखे से सिवा बन गए हैं हम
बंदा न बन सके तो ख़ुदा बन गए हैं हम

मरना भी अब मुहाल है जीना भी अब मुहाल
अपने किए की आप सज़ा बन गए हैं हम

मजबूर-ए-जब्र-ए-इश्क़ हैं मुख़्तार-ए-ज़ब्त-ए-ग़म
तुम ही ज़रा बताओ कि क्या बन गए हैं हम

है अब भी इल्तिफ़ात का तालिब दिल-ए-हज़ीं
तस्लीम कि राज़ी-ब-रज़ा बन गए हैं हम

ग़म-गश्तगान-ए-दश्त-ए-मोहब्बत हूँ मुस्तफ़ीद
राह-ए-तलब में शम-ए-वफ़ा बन गए हैं हम

अब तो ख़ुशी है हाथ में ग़म है न मर्ग ओ ज़ीस्त
अल-मुख़्तसर कि तेरी रज़ा बन गए हैं हम

तर्क-ए-तलब के फ़ैज़ से दिल अब है मुतमइन
अपनी सज़ा की आप जज़ा बन गए हैं हम