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तपते सहराओं की सौग़ात लिए बैठा है | शाही शायरी
tapte sahraon ki saughat liye baiTha hai

ग़ज़ल

तपते सहराओं की सौग़ात लिए बैठा है

हामिद मुख़्तार हामिद

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तपते सहराओं की सौग़ात लिए बैठा है
प्यासी आँखों में वो बरसात लिए बैठा है

चंद मसले हुए सफ़्हात लिए बैठा है
घर का बूढ़ा जो रिवायात लिए बैठा है

उम्र ही तेरी गुज़र जाएगी उन के हल में
तेरा बच्चा जो सवालात लिए बैठा है

ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग पे रंगीन कशीदा आँचल
वो कोई तारों भरी रात लिए बैठा है

तू बहादुर है मगर हेच है उस के आगे
एक बुज़दिल जो तिरी बात लिए बैठा है

कैसे कह दूँ कि उसे जीने का हक़ है 'हामिद'
दिल में जो लाशा-ए-जज़्बात लिए बैठा है