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तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है | शाही शायरी
tanhai ke lamhat ka ehsas hua hai

ग़ज़ल

तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है

नसीम शाहजहाँपुरी

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तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है

कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है

क्या देखिए उन तीरा-नसीबों का हो अंजाम
दिन में भी जिन्हें रात का एहसास हुआ है

वो ज़ुल्म भी अब ज़ुल्म की हद तक नहीं करते
आख़िर उन्हें किस बात का एहसास हुआ है

बाज़ी-गह-ए-आलम में तो इक खेल है जीना
इस खेल में कब मात का एहसास हुआ है

रुख़ पर तिरे बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों का ये आलम
दिन का तो कभी रात का एहसास हुआ है

कुछ ख़ुद भी वो नादिम हैं 'नसीम' अपनी जफ़ा पर
कुछ मेरी शिकायात का एहसास हुआ है