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तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया | शाही शायरी
tanha kar ke mujhko salib-e-sawal pe chhoD diya

ग़ज़ल

तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया

तफ़ज़ील अहमद

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तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया
मैं ने भी दुनिया को उस के हाल पे छोड़ दिया

इक चिंगारी इक जुगनू इक आँसू और इक फूल
जाते हुए क्या क्या उस ने रूमाल पे छोड़ दिया

पारा पारा ख़ुशबू चकराती है कमरे में
आग जला के शीरा उस ने उबाल पे छोड़ दिया

पहले उस ने बरसाए आकाश पे सारे तीर
फिर धीरे से घोड़े को पाताल पे छोड़ दिया

उठने वाला है बाज़ार कहूँ क्या यूसुफ़ से
सिक्कों का थैला मैं ने टिकसाल पे छोड़ दिया

ताज़ीरात पे दिल महशर तन लर्ज़ा चेहरा फ़क़
रब ने चश्म-ए-दो-क़तरा सय्याल पे छोड़ दिया

पश़्मीने सा माज़ी था 'तफ़ज़ील' समोर सा हाल
मुस्तक़बिल को ऊनी हवा की ताल पे छोड़ दिया