तंग आग़ोश में आबाद करूँगा तुझ को
हूँ बहुत शाद कि नाशाद करूँगा तुझ को
फ़िक्र-ए-ईजाद में गुम हूँ मुझे ग़ाफ़िल न समझ
अपने अंदाज़ पर ईजाद करूँगा तुझ को
नश्शा है राह की दूरी का कि हमराह है तू
जाने किस शहर में आबाद करूँगा तुझ को
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
मैं कि रहता हूँ ब-सद-नाज़ गुरेज़ाँ तुझ से
तू न होगा तो बहुत याद करूँगा तुझ को
ग़ज़ल
तंग आग़ोश में आबाद करूँगा तुझ को
जौन एलिया