तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था
हमारी राह में बस नक़्श-ए-पा हमारा था
उस एक साअत-ए-शब का ख़ुमार याद करें
बदन के लम्स को जब हम ने मिल के बाँटा था
वो एक लम्हा जिसे तुम ने छू के छोड़ दिया
उस एक लम्हे में कैफ़-ए-विसाल सारा था
फिर इस के ब'अद निगाहों ने कुछ नहीं देखा
न जाने कौन था जो सामने से गुज़रा था
अब उस के नाम पे दिल ने धड़कना छोड़ दिया
वो जिस को हम ने कभी बे-हिसाब चाहा था
वो जिस को देखा था अक्सर हुजूम-ए-याराँ में
वो एक शख़्स बहुत उन दिनों अकेला था
तमाम सौत-ओ-सदा चुप से हो गए थे 'ज़ुबैर'
वो जब सुकूत के पत्थर पे गिर के टूटा था

ग़ज़ल
तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था
ज़ुबैर रिज़वी