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तल्ख़ी-ए-हालात-ए-दौराँ का बयाँ है ज़िंदगी | शाही शायरी
talKHi-e-haalat-e-dauran ka bayan hai zindagi

ग़ज़ल

तल्ख़ी-ए-हालात-ए-दौराँ का बयाँ है ज़िंदगी

महेश चंद्र नक़्श

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तल्ख़ी-ए-हालात-ए-दौराँ का बयाँ है ज़िंदगी
दर्द-ओ-ग़म की इक मुसलसल दास्ताँ है ज़िंदगी

अल्लाह अल्लाह ये सफ़र ये राह ये दुश्वारियाँ
वक़्त के शानों पे इक बार-ए-गिराँ है ज़िंदगी

जिन की हलचल में है तूफ़ानी हवाओं का ख़रोश
उन तड़पती आरज़ूओं का जहाँ है ज़िंदगी

शिद्दत-ए-एहसास-ए-नाकामी की आतिश-गाह से
ख़िर्मन-ए-जज़्बात पर शोला-फ़िशाँ है ज़िंदगी

है किसे अब ज़िंदगी के दर्द-ए-पिन्हाँ की ख़बर
अपनी बर्बादी की ख़ुद ही राज़-दाँ है ज़िंदगी

ये उमीदों का चमन है रश्क-ए-सद हुस्न-ए-चमन
इस चमन की इक बहार-ए-जावेदाँ है ज़िंदगी

है उसी के नूर से ताबानी-ए-कौन-ओ-मकाँ
ज़ुल्मत-ए-बज़्म-ए-जहाँ में ज़ौ-फ़िशाँ है ज़िंदगी

उस की मर्ज़ी पर है हर क़ैद ओ रिहाई मुनहसिर
ख़ुद क़फ़स है और ख़ुद ही आशियाँ है ज़िंदगी

'नक़्श' दर्द-ए-क़ौम है क़ल्ब ओ जिगर में शोला-ज़न
जज़्बा-ए-अहल-ए-वतन की तर्जुमाँ है ज़िंदगी