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तलाश-ए-कौन-ओ-मकाँ है न ला-मकाँ की तलाश | शाही शायरी
talash-e-kaun-o-makan hai na la-makan ki talash

ग़ज़ल

तलाश-ए-कौन-ओ-मकाँ है न ला-मकाँ की तलाश

मसूद अख़्तर जमाल

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तलाश-ए-कौन-ओ-मकाँ है न ला-मकाँ की तलाश
ये ज़िंदगी है ग़म-ए-इश्क़-ए-जावेदाँ की तलाश

इसी ज़मीं को हमें आसमाँ बनाना है
हमें नहीं है किसी और आसमाँ की तलाश

किसी को मंज़िल-ए-इशरत का ग़म है और मुझे
हुई है मंज़िल-ए-इशरत पे कारवाँ की तलाश

ये ख़्वाब है कि है ताबीर-ए-ख़्वाब ऐ ग़म-ए-दिल
हर इक क़दम है यहाँ उम्र-ए-राएगाँ की तलाश

बहार-ए-लाला-ओ-गुल बर्क़-ए-बे-अमाँ निकली
कहाँ कहाँ न रही मेरे आशियाँ की तलाश

जो हो सके तो मिरा ग़म ही जावेदाँ हो जाए
'जमाल' मुझ को नहीं ऐश-ए-जावेदाँ की तलाश